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Sunday, June 30, 2013

आने वाला युग पढेगा हमें...

आने वाला युग भी पढ़ता रहेगा हमें
जैसा कि अबतक पढ़ते आ रहे हैं हम
प्रकारान्तर में हर पिछले युग को
या तो विरोधों पर आपत्तिजनक विरोध दर्ज करके
या फिर एक जटिल साम्य की खोज करके

उन अनपढ़ी लिपियों पर चिपके हुए
भुरभुरे भावाश्मों को खुरच-खुरच कर
एक संकीर्ण शोध की सतत प्रक्रिया से
अपने व्याख्यायों के परिणाम को
अपने ही तर्कों से प्रमाणित करते हुए
या फिर वतानुकूलीय विभिन्नताओं में पैदा होते
अनचीन्हे जीवाणुओं-विषाणुओं से उत्पन्न
प्रतिलिपियों के सूक्ष्म संक्रमण के
वस्तुनिष्ठ तथ्यों को यथासंभव प्रस्तुत करके
या फिर सांस्कृतिक गरिमा के प्रति
बहुआयामी भावनाओं को स्फुरित करने वाले
नई लिपियों के प्रतिरोधक तंत्रों को
अपनी गली उँगलियों पर ही सही
समय की स्याही से ठप्पा लगाते हुए

आने वाला युग भी पढ़ता रहेगा हमें
जैसा कि अबतक पढ़ते आ रहे हैं हम
एक विश्लेष्णात्मक औपचारिकता का निर्वाह करके
अनुकरण-पुनरावृत्तियों में घुले लवणों को
अपने बौद्धिकीय चुम्बक से सटाते हुए
संभवत: कुछ दूर तक ही सही
समकालीन नैतिकता को नई परिभाषा मिले
या फिर नियति के त्रासदी को कोई
प्रमाणिक हस्ताक्षर ही मिल जाए
और बुढ़ाई खांसियों का इतिहास
अपने गले के खरास से निजात पाए
व यहाँ-वहाँ फेंके अपने बलगम पर
सूखे हुए खून के धब्बों की गवाही में
हर अगला युग को वैसे ही खड़ा पाए
जैसे कि आज हम खड़े हैं .



34 comments:

  1. अनुकरण-पुनरावृत्तियों में घुले लवणों को अपने बौद्धिकीय चुम्बक से सटाते हुए अपने बौद्धिकीय चुम्बक से सटाते हुए संभवत: कुछ दूर तक ही सही समकालीन नैतिकता को नई परिभाषा मिले या फिर नियति के त्रासदी को कोई प्रमाणिक हस्ताक्षर ही मिल जाए..............................नैतिकता, मौलिकता को जब खोखलाहट मिल रही हो, तो आपकी यह सशक्‍त रचना तथाकथित मौलिकनैतिक आढ़ोलन को निश्चित रुप से दर्पण दिखाने का कार्य कर रही है। रचना के चहुंमुखी गूढ़ विश्‍लेषण को देखते हुए इसे कई बार पढ़ने पढ़ेगा। इस बीच मैं अपनी तुच्‍छ टिप्‍पणी ही आपकी रचना पर कर रहा हूँ। आपको यह रचनानुकूल लगेगी या नहीं, मुझे सन्‍देह है।

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  2. सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.....सशक्‍त रचना.

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  3. सुन्दर प्रस्तुति..

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  4. इतिहास की प्रामाणिकता और हमारी संलिप्तता भी पढ़ेंगी पीढ़ियाँ..

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  5. आने वाला युग भी पढ़ता रहेगा हमें
    जैसा कि अबतक पढ़ते आ रहे हैं हम

    बहुत ही सार्थक रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. ....शायद फिर से किसी रोजेटा स्टोन की खोज हो सदियों से दबी आज की हमारी बातों का पता चले. लेकिन तब तक पता नहीं शायद और भी नए तकनीक आ जायें. ध्वनि तरंगों के आयाम बढ़ाने और उनको छानने की तकनीक आ जाए और ब्रम्हांड में पसरे हमारे तथा हमारे पूर्वजों के शब्द भी तलाश लिए जाएँ. आज जो हम जानते हैं वो तो बस कुछ हजार साल पुरानी बातें है. समय के पैमाने पर सदियाँ-सहस्त्राब्दियाँ कितनी छोटी लगती हैं.

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  7. विज्ञान की शब्दावली में समाज के बारे में कविता लिखने का अंदाज अच्छा लगा. इतनी सहजता से अपनी बातों को रखने का हुनर कविता को पठनीय बना देता है. संदर्भ काबिल-ए-गौर है. अतीत के बोझ से झुटकारे में अतीत की कुछ खरोंचे तो भविष्य का हिस्सा बन जाती है. इसी को संक्रमण काल के विशेषण से नवाजा जा सकता है. जिससे आगे के बदलाव की भूमिका बनती है. बहुत-बहुत शुक्रिया सुंदर पोस्ट के लिए.

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    1. बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!
      आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (03-07-2013) के .. जीवन के भिन्न भिन्न रूप ..... तुझ पर ही वारेंगे हम .!! चर्चा मंच अंक-1295 पर भी होगी!
      सादर...!
      शशि पुरवार

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  8. आने वाला युग भी पढ़ता रहेगा हमें
    जैसा कि अबतक पढ़ते आ रहे हैं हम
    एक विश्लेष्णात्मक औपचारिकता का निर्वाह करके
    अनुकरण-पुनरावृत्तियों में घुले लवणों को
    अपने बौद्धिकीय चुम्बक से सटाते हुए
    संभवत: कुछ दूर तक ही सही
    समकालीन नैतिकता को नई परिभाषा मिले
    very nice presentation .

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  9. आपकी रचनाओं में विज्ञान सम्बंधित शब्दों का बड़ा ही अनूठा प्रयोग देखने को मिलता है। और विज्ञानं के उदाहरणों को सांकेतिक तौर पर सामाजिक पृष्ठभूमि में प्रयोग बेहद ही प्रभावशाली है आपका। बेहतरीन रचना।

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  10. हर अगला युग को वैसे ही खड़ा पाए
    जैसे कि आज हम खड़े हैं .

    समय का पहिया अनवरत चले ....
    हम जो आज उसका हिस्सा हैं ....
    कल उसका किस्सा होंगे ...
    चलो कुछ ऐसा कर चलें ...

    आने वाला युग भी पढ़ता रहेगा हमें
    जैसा कि अबतक पढ़ते आ रहे हैं हम
    एक विश्लेष्णात्मक औपचारिकता का निर्वाह करके
    अनुकरण-पुनरावृत्तियों में घुले लवणों को
    अपने बौद्धिकीय चुम्बक से सटाते हुए
    संभवत: कुछ दूर तक ही सही....

    बहुत सुंदर बात कही अमृता जी ....!!!
    सुंदर मार्गदर्शन ही कहूँगी इसे ....

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  11. आने वाला युग भी पढ़ता रहेगा हमें
    जैसा कि अबतक पढ़ते आ रहे हैं हम



    बहुत सुंदर सोच को शब्द दिया है आपने।

    बहुत बढिया

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  12. ये क्रम है जीवन का ... सभ्यता के विकास का ...
    निरंतरता शायद इसी में है ... गहरी सोच की अभिव्यक्ति है ...

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  13. बहुत गंभीरता से किया गया लेखन..हर युग अपने पीछे के युग को निहारता है, खंगालता है और सीखता है कुछ न कुछ..

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  14. हिसाब देना ही होगा हमे आने वाले कल को शायद यही सोचकर समकालीन नैतिकता को नई परिभाषा मिले... गहन चिंतन से उपजी बहुत सुन्दर रचना...

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  15. प्रत्येक लिखित शब्द और वाक्य मूल्यवान होता है और जैसे-जैसे समय गुजरता है वैसे वैसे उसका महत्त्व और बढ जाता है। दुनिया के सभी लेखकों का मू्ल्य उनके समय के गुजरने के बाद ही बढा है यह सत्य हमारे सामने है ही। आपकी कविता में जिन भावों का वर्णन है वह यह भी है कि आने वाला युग पढता है इसीलिए वर्तमान में जिम्मेदारी के साथ लेखन करना चाहिए।

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  16. पूरी कविता एक जीवंत दस्तावेज है....हर युग के लिए....यह इस बात की भी गहनता से छानबीन करती है कि आखिर हम किस रूप में याद किये जायेंगे ?.......

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  17. एक दस्तावेज़ लेख और लेखन का लिखें पढ़ने योग्य सुन्दर पस्तुति के लिए आभार

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  18. ye aapne bilkul theek kaha hai didi!!!!
    bahut achhi lagi ye kavita bhi!

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  19. हर अगला युग को वैसे ही खड़ा पाए
    जैसे कि आज हम खड़े हैं

    हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी ही होगी कुछ बेहतर न कर पायें तो बदतर होने से तो बचाएं

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  20. हर बीता हुआ दिन एक इसिहस है, आज भी इतिहास हो जायेगा
    latest post मेरी माँ ने कहा !
    latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )

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  21. आने वाला युग भी पढ़ता रहेगा हमें
    जैसा कि अबतक पढ़ते आ रहे हैं हम
    आदरणीया समय के पहियों का कल आज और कल में समावेश लिए काव्य पर बधाई ,

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  22. बिलकुल सही कहा आपने, ऐसा ही होता आया है ऐसा ही होता रहेगा ,



    यहाँ भी पधारे ,http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html

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  23. हर दिन इतिहास बन जाता है..हम भी कल इतिहास बन जाएंगे..सही कहा अमृता जी आपने...

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  24. बहुत गहन और उत्कर्ष विश्लेषण....

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  25. बेहतरीन........ हर आज याल एक अतीत बन जाएगा और इतिहास के पन्नो में समा जाएगा।

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  26. डूब कर लिखती हैं पाठको को डूबा देती हैं
    इक नयी कविता की उम्मीद जगा देती हैं
    बहुत बहुत बधाई ..आप यूं ही लिखती रहे इन्ही शुभकामनाओं के साथ

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  27. बहुत ही तथ्यपरक , विश्लेषणपूर्ण एवं सार्थक रचना । हार्दिक बधाई । शुभकामनाओँ के साथ सस्नेह

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  28. आने वाले का तो पता नहीं....आज ही लोग पढ़ लें तोबेहतर होगा

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  29. हाँ, हम वही पढ़ते हैं जो हम से पहले वाला लिख गया है. यह जारी रहता है एक शोध के रूप में, एक इतिहास के रूप में जिसमें हम कुछ दूरी तक अपना इतिहास ढूँढते हैं.
    बहुत कचोटने वाली कविता है.

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