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Friday, March 8, 2013

रोक लेते हो जो तुम मुझे ...


रोक लेते हो जो तुम मुझे
विहगों के स्वर पर
सहसा अधरों से फूट पड़ते हैं
बेसुध रागों में निर्झर गान
पल झपते ही नव छंदों से
आह्लादित हो जाता है आसमान
मन मसोस कर प्रिया की गोद से
निकल आता है विजर विहान ...

रोक लेते हो जो तुम मुझे
पंखुड़ियों के कर पर
परवश मदिर पराग उड़-उड़ कर
ह्रदय-कालिका को खुलकाता है
उस इन्द्रधनु से रोहित रंग उतर कर
सस्मित सौरभ से मिल जाता है
और मन-प्राणों में महक-महक कर
इक कस्तूरिया कुमुद खिल जाता है ...

रोक लेते हो जो तुम मुझे
सागर की लहर पर
मेरे स्वप्नलोक के राजमहल में
मेरा इच्छित मंडप सज जाता है
शुभ आशीष बरस-बरस कर
एक स्वयंवर रचा जाता है
और वेदी के मंगल मन्त्रों से
भंवरों पर ही भांवर पर जाता है ...

रोक लेते हो जो तुम मुझे
चन्द्रमा के डगर पर
इस सेज-सी बिछी रात पर
गगन ऐसे गिर सा जाता है
कि चंदराई सी चंदनिया चिलकती है
और पुलकित स्पर्श चमक जाता है
बस फैली-फैली चुनर देख कर
बेबस चाँद भी ठहर जाता है ...

रोक लेते हो जो तुम मुझे
अपने ही पहर पर
नभगंगायें , नीहारिकाएं , नक्षत्र सभी
अपनी गति ही भूल जाते हैं
और मेरा पथ भी मोड़-मोड़ कर
बस तुम तक ही ले आते हैं
मैं भोली ,न समझूँ तब भी
मुझे , तेरा अभेद भेद ही समझाते है ...

रोक लेते हो जो तुम मुझे
मेरे अगर-मगर पर
कण-कण में कुतूहली जगा कर
मुझसे कुछ आगे बढ़ जाता है
तुम जो भी न कहना चाहो
उस उस को भी वह पढ़ जाता है
ये सृष्टि अपना मुख ढक लेती है
और प्रेम उघड़-उघड़ जाता है ...

रोक लेते हो जो तुम मुझे ...

31 comments:

  1. अति सुन्दर काव्य रचना. सुन्दर भाव प्रवाह. कविता की पूरी खुराक है:)

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  2. बहुत ही सुन्दर कविता अमृता जी आभार |

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  3. तुम जो भी न कहना चाहो
    उस उस को भी वह पढ़ जाता है
    ये सृष्टि अपना मुख ढक लेती है
    और प्रेम उघड़-उघड़ जाता है ...
    भावनाओं का अनूठा संगम ...

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  4. सुन्दर प्रस्तुति आदरेया--
    शुभकामनायें-
    सादर

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  5. अहा, मन मुग्ध हो गया, हम इतने प्रेम प्लावित हो जायें बस रोक लेने की बात है।

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  6. adbhut srijansheelta hai aap me Amrita jii ....
    Ishwar din rat aapki lekhani prakhar karen .....!!
    bahut sundar rachna ....!!

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  7. मेरा पथ भी मोड़-मोड़ कर
    बस तुम तक ही ले आते हैं..........गदगद।

    ये सृष्टि अपना मुख ढक लेती है
    और प्रेम उघड़-उघड़ जाता है..............इस हेतु आपका होली अभिनन्‍दन। बहुत ही प्रेमिल, स्‍नेहिल एवं उत्‍कृष्‍ट कविता। अत्‍यन्‍त लुभावनी।

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  8. स्वप्न लोक से बरसती और मंगल मन्त्रों से उच्चारित मन प्राणों का निर्झर गान .. ह्रदय को बेसुध करती ...

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  9. रोक लेने पर क्या से क्या हो जाता है तो आगे बढ़ कर रोक ही लें ना .
    अहसासों को शब्दों ने मधुर बनाया !

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  10. रोक लेते हो जो तुम मुझे
    मेरे अगर-मगर पर
    कण-कण में कुतूहली जगा कर
    मुझसे कुछ आगे बढ़ जाता है
    तुम जो भी न कहना चाहो
    उस उस को भी वह पढ़ जाता है
    ये सृष्टि अपना मुख ढक लेती है
    और प्रेम उघड़-उघड़ जाता है ...

    ....एक उत्कृष्ट भावमयी प्रेम प्लावित रचना...

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  11. साधारण से असाधारण भाव....... बेहतरीन

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  12. मनचाहे आमंत्रण की मुग्धता मन को विभोर जो कर देती है !

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  13. अपने ही पहर पर
    नभगंगायें , नीहारिकाएं , नक्षत्र सभी
    अपनी गति ही भूल जाते हैं
    और मेरा पथ भी मोड़-मोड़ कर
    बस तुम तक ही ले आते हैं
    मैं भोली ,न समझूँ तब भी
    मुझे , तेरा अभेद भेद ही समझाते है ...

    वाह अमृता जी ...सीढ़ी दर सीढ़ी आपका उन्नयन देख बहुत अच्छा लगता है

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  14. bahut sundar rachna amrita ji ....

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  15. जरा सा रोक लेना पूरी सृष्टि को स्नेह से भर देता है.. अद्भुत भाव ... आपकी सृजनशीलता का जवाब नहीं अमृता जी... शुभकामनायें

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  16. प्रभावी शब्द चयन और भाव ....

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  17. पराकाष्ठा..... प्रेम के स्पंदन ....और उसकी अभिव्यक्ति की ....मुग्ध कर दिया आपने ....!!!!

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  18. लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ...

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  19. तुम जो भी न कहना चाहो
    उस उस को भी वह पढ़ जाता है
    ये सृष्टि अपना मुख ढक लेती है
    और प्रेम उघड़-उघड़ जाता है ...

    सुंदर प्रस्तुति.
    महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ.

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  20. बहुत खूब सार्धक लाजबाब अभिव्यक्ति।
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये
    कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे

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  21. रोक लेते हो जो तुम मुझे
    सागर की लहर पर
    मेरे स्वप्नलोक के राजमहल में
    मेरा इच्छित मंडप सज जाता है
    शुभ आशीष बरस-बरस कर
    एक स्वयंवर रचा जाता है
    और वेदी के मंगल मन्त्रों से
    भंवरों पर ही भांवर पर जाता है
    हर पंक्ति में प्रेम भाव है -बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    latest postअहम् का गुलाम (दूसरा भाग )
    latest postमहाशिव रात्रि

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  22. behtareen......

    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  23. सुंदर अभिव्यक्ति....

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  24. रोक लेते हो जो तुम मुझे
    मेरे अगर-मगर पर
    कण-कण में कुतूहली जगा कर
    मुझसे कुछ आगे बढ़ जाता है
    तुम जो भी न कहना चाहो
    उस उस को भी वह पढ़ जाता है
    ये सृष्टि अपना मुख ढक लेती है
    और प्रेम उघड़-उघड़ जाता है ...

    वाह ! अमृता जी, इसके आगे तो मन झुक जाता है और निशब्द हो जाता है..आपके ही शब्दों में अहोभाव !

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  25. रोक लेते हो जो तुम मुझे
    चन्द्रमा के डगर पर
    इस सेज-सी बिछी रात पर
    गगन ऐसे गिर सा जाता है
    कि चंदराई सी चंदनिया चिलकती है
    और पुलकित स्पर्श चमक जाता है
    बस फैली-फैली चुनर देख कर
    बेबस चाँद भी ठहर जाता है ...

    राग सी लोरी सी मीठी रचना है .प्रेम ही है सृष्टि के केंद्र में जिसके गिर्द तमाम नीहारिकाएं भी घूमती हैं .(ह्रदय-कालिका को खुलकाता है,कलिका .........).उत्कृष्ट रचना .शादिक सौन्दर्य से आगे निकल रूपकात्मक बिम्ब भी समेटे है प्रेम के विराट स्वरूप की ओर इशारा है .

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  26. परवश मदिर पराग उड़-उड़ कर
    ह्रदय-कालिका को खुलकाता है ..... sadhoo

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  27. आ. अमृता जी होली पर बधाई
    और इस पर्व पर ऐसी चाशनी
    से पगी हुई रचना की अपेक्षा थी ....
    माफ़ करिए पर इस होली पर
    थोड़ा सा फ़िल्मी हो रहा हूँ ......
    " कोई तोह रोक लो .... "
    प्रेम उघड़-उघड़ जाता है ....

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