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Tuesday, October 30, 2012

जिन्हें तकलीफ है किसी से ...


भीखमंगा बनकर सबसे
मोती मांगने का चलन है
बोनस में मिलते दुत्कार का
करता कौन आकलन है...

अपने ही प्राणों में दौड़ती
कड़वाहटों का जलन है , पर
एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप
करने में ही सभी मगन हैं...

मारे शर्म के पाताल में
कहीं छुप गया गगन है
भागीरथी-कतार देखकर तो
उसका बढ़ रहा भरम है...

भूल-चूक से भूल हो तो
ऐसी कोई बात नहीं है
अँधेरे को भी जो छलता है
वो तो कोई रात नहीं है...

कालिख से पुता उजाला
अपने ब्रांड को भजा रहा है
सफेदी की चमकार का हवाला दे
हाट-घाट पर दूकान सजा रहा है...

मछली तो फंसने के लिए होती है
और मल्टी-चारा भी कमाल है
मुँह में चूहे का दांत दबाये हुए
सबके कंधे पर एक जाल है...

सुख तो कोई दुर्लभ चीज नहीं
बस नीचे गिरते जाना है
बिन सोचे वो सब कर के
इस दुनिया का कर्ज चुकाना है...

जिन्हें तकलीफ है किसी से
चुपचाप जगह खाली कर दे
और भीखमंगों की झोली को
अपने आत्मसम्मान से भर दे .

27 comments:

  1. उत्कृष्ट कृति पढने को मिली |
    आभार ||

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  2. मछली तो फंसने के लिए होती है
    और मल्टी-चारा भी कमाल है
    मुँह में चूहे का दांत दबाये हुए
    सबके कंधे पर एक जाल है...

    बात कहने का नया अंदाज़.

    जिन्हें तकलीफ है किसी से
    चुपचाप जगह खाली कर दे
    और भीखमंगों की झोली को
    अपने आत्मसम्मान से भर दे.

    ये पंक्तियाँ पलटवार करती प्रतीत होती हैं. बहुत ही उम्दा रचना.

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  3. सच है, आत्मा का उभार स्वयं से आता है।

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  4. जिन्हें तकलीफ है किसी से
    चुपचाप जगह खाली कर दे
    और भीखमंगों की झोली को
    अपने आत्मसम्मान से भर दे.
    वाह ... बहुत खूब

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  5. बहुत खूब ..
    सुंदर रचना

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  6. सुख तो कोई दुर्लभ चीज नहीं
    बस नीचे गिरते जाना है
    बिन सोचे वो सब कर के
    इस दुनिया का कर्ज चुकाना है...क्या कटाक्ष किया है,शतप्रतिशत सच

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  7. इस कविता के माध्यम से व्यंग्य का नया प्रयोग ...बहुत खूब :)))

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  8. कविता में प्रयुक्त कुछ प्रयोग आश्चर्यचकित करते हैं .. जैसे
    मुँह में चूहे का दांत दबाये हुए
    सबके कंधे पर एक जाल है...
    *बोनस में मिलते दुत्कार
    *भागीरथी-कतार
    इस कविता में वैश्वीकरण, उपभोक्तावाद और बाज़ारवाद की सूक्ष्म जांच-पड़ताल है। इसकी भयावह प्रवृत्तियों की पहचान की गई है। जीवन के हर क्षेत्र में बाज़ार ने सबसे शक्तिशाली हैसियत हासिल कर ली है। वह समाज की दिशा तय कर रहा है। आम आदमे असहाय और ठगा महसूस कर रहा है।

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  9. बड़ा ज़बरदस्त व्यंगात्मक प्रहार है इशारा किस तरफ था :-)

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  10. क्या खूब व्यक्त किया है.. तीखा प्रहार..

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  11. मल्टीकलर दुनिया के मल्टीकलर शेड

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  12. Amrita,

    DUNIYA KE RANGON KA THEEK KAHAA AAPNE.

    Take care

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  13. बहुत खूब,,,सशक्त करारा कटाक्ष ,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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  14. मुझे लगता है सारी ऐसी विसंगतियां आने वाली दीवाली में ख़त्म हो जायेगीं!

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  15. बोनस में मिलते दुत्कार का
    करता कौन आकलन है...


    मुँह में चूहे का दांत दबाये हुए
    सबके कंधे पर एक जाल है...

    नवीन प्रतीकों से सजी रचना

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  16. बहुत बढ़िया...
    बेहतरीन कटाक्ष...

    अनु

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  17. बहुत सुन्दर .बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति

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  18. जिन्हें तकलीफ है किसी से
    चुपचाप जगह खाली कर दे
    और भीखमंगों की झोली को
    अपने आत्मसम्मान से भर दे...

    बेहतरीन रचना...

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  19. शब्दों की यह मार बहुत पैनी है !

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  20. नए नए प्रतीकों व बिंबों से सजी रचना..

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  21. बहुत बढ़िया रचना |
    मेरे ब्लॉग में पधारें और जुड़ें |
    मेरा काव्य-पिटारा

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  22. कविता अच्छी लगी एवं अभिव्यक्ति का सलीका भी प्रभावित कर गया।। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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  23. बहुत ही तीखा और करार व्यंग ! एक सार्थक रचना !
    आज पहली बार आपको पढ़ा। आपकी लेखनी की समृद्धता मन को आकर्षित कर गई !
    ढेरों शुभ कामनाओं के साथ।

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