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Friday, August 24, 2012

मिल जाए कुछ ...


आखिरी कसौटी को
छुए बिना
कैसे कहा जाए
कि हवा में
कितनी गर्माहट है
और वह
खुद को ही
उलीचने को
कितनी उतावली है...
पर
विचारों को उबलते
देख रही हूँ
वाष्पीकरण के
उत्ताप बिंदु पर
उद्विग्न होते भी
देख रही हूँ
चेतना के आसमान में
संघनित होते भी
देख रही हूँ
चातक ह्रदय की
विह्वलता को भी
देख रही हूँ
और
भावों को बूंदों में
बदलते हुए भी
देख रही हूँ
बस
मिल जाए कुछ
पिघले-पिघले से
शब्द
तो चट्टान भी
भला खुद को
कैसे रोक सकेंगे
गीला होने से .

38 comments:

  1. शब्द की खोज तो शाश्वत है और उन्हें मिले भी हैं जो डूबना जानते हैं .....

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  2. बेहतरीन और लाजवाब पोस्ट.....हैट्स ऑफ इसके लिए।

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  3. चातक हृदय की विह्वलता शब्दों में पिघल ही गयी ... सुंदर अभिव्यक्ति

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  4. बहुत सुंदर


    भावों को बूंदों में
    बदलते हुए भी
    देख रही हूँ
    बस
    मिल जाए कुछ
    पिघले-पिघले से
    शब्द

    क्या कहने, सुंदर भाव

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  5. चातक ह्रदय की
    विह्वलता को भी
    देख रही हूँ
    और
    भावों को बूंदों में
    बदलते हुए भी

    बहुत खूबसूरत भाव .....!!आपकी लेखनी की कायल हूँ ...अमृता जी ..

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  6. आखिरी कसौटी को
    छुए बिना
    कैसे कहा जाए
    कि हवा में
    कितनी गर्माहट है
    ~~~~~~~~~~~~
    तो चट्टान भी
    भला खुद को
    कैसे रोक सकेंगे
    गीला होने से
    बहुत खूब !

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  7. चट्टान तो हमेशा से नतमस्तक होते रहे हैं
    ह्रदय की भाव विह्वलता के आगे........
    ..तो बस पिघले-पिघले शब्द
    ..तो बस गीले-गीले शब्द

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  8. पिघले शब्द चट्टानों पर गिरते ही खुद जाते हैं. बहुत सुंदर कविता.

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  9. मिल जाए कुछ
    पिघले-पिघले से
    शब्द
    तो चट्टान भी
    भला खुद को
    कैसे रोक सकेंगे
    गीला होने से .
    भावमय करते शब्‍दों का संगम ...

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  10. चातक ह्रदय की
    विह्वलता को भी
    देख रही हूँ
    और
    भावों को बूंदों में
    बदलते हुए भी
    देख रही हूँ,,,,,लाजबाब भावपूर्ण लेखनी ,,,अमृता जी,,,,

    RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,


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  11. बढ़िया प्रस्तुति |

    चट्टानें भी दरकती, सर्द गर्म एहसास |
    ढोंग दिखावा किन्तु है, रखें मुखौटा पास |
    रखें मुखौटा पास, शब्द में ताकत भारी |
    महायुद्ध कुछ ख़ास, हुई खुब मारामारी |
    भाव शून्य चर-अचर, सत्य रविकर क्यूँ माने |
    शब्द करे तन गील, सील जाएँ चट्टानें ||

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  12. कविता में मन के भावों को सहजता से अभिव्यक्ति मिल रही है। शब्दों की तलाश और चातक हृदय का संवाद कविता में साकार होता है। आखिरी कसौटी को छुए बिना कैसे कहा जाए कि हवा में कितनी गर्माहट है? बात कहने के लिए सतर्कता के ऐसे पैमाने काबिल-ए-गौर हैं। जब तक किसी बात का यकीन न हो जाए...उसे कैसे शब्द दिए जाएं...लेखक की जिम्मेदारी की तरफ भी ध्यान खींचते हैं। बेहद आभार आपकी कविता के लिए। शुक्रिया।

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  13. बहुत सुन्दर
    भाव अभिव्यक्ति...
    उत्तम..
    :-)

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  14. बहुत्सुन्दर रचना ...शब्द समायोजन भी कमाल का है बधाई

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  15. चेतना के आसमान में
    संघनित होते भी
    देख रही हूँ

    वहीं से भावों की टपटप बारिश होती है..

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  16. Amrita,

    KISI KI ICHCHHA KA VARNAN BAHUT ACHCHHA KIYAA HAI.

    Take care

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  17. बस
    मिल जाए कुछ
    पिघले-पिघले से
    शब्द
    तो चट्टान भी
    भला खुद को
    कैसे रोक सकेंगे
    गीला होने से .

    ....लाज़वाब..भावों की अद्भुत प्रस्तुति...

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  18. भावों का पिघलना कौन देखता है..
    सब को केवल पत्थर की तपन ही दिखाई देती है....!

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  19. अमृता जी, आपकी कई कविताओं में देखा है.. Scientific analogy बड़ी ही बेमिसाल ढंग से प्रयुक्त है.. ये स्वयं में एक विशेषज्ञता का सूचक है.. बहुत ही उत्कृष्ट रचनाएँ.. हर बार..
    ढेरों शुभकामनायें..
    सादर

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  20. बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति.

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  21. आपकी प्रस्तुति ...आपकी शैली ...आपकी हर रचना ...उत्कृष्ट होती है ....बहुत सुन्दर

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  22. आपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद

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  23. कल 26/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  24. भावों का बूंदों में बदलना शब्द का पिघलना, भिगो ही जाता है फिर चाहे कोई चट्टान ही क्यों न हो.... बहुत सुन्दर, अद्भुत लेखन अमृता जी

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  25. विचारों को उबलते
    देख रही हूँ
    वाष्पीकरण के
    उत्ताप बिंदु पर
    उद्विग्न होते भी
    देख रही हूँ हाँ एक दिन चट्टान को भी पिघलना पड़ता है विदरित होते होते ,पानी से ,हवा से ,.....हाँ उत्ताप बिंदु वाष्पीकरण का नहीं होता ,वाष्पीकरण तो हर तापमान (टेम्प्रेचर पर होता रहता है ),उत्ताप बिंदु होता है बोइलिंग का ,उबल कर ,खौलकर बहने का भावनाओं का सैलाब लिए आती है आपकी हर रचना ,कैसी भी चट्टान हो पिघल जाती है ,भावना का ज्वार तो यूं ही आये एक बार सही ....भावनाए रंग और शक्ल दोनों बदल देतीं हैं आदम और हव्वा की ... कृपया यहाँ भी पधारें -
    शनिवार, 25 अगस्त 2012
    आखिरकार सियाटिका से भी राहत मिल जाती है .घबराइये नहीं
    गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)एक सम्पूर्ण आलेख अब हिंदी में भी परिवर्धित रूप लिए .....http://veerubhai1947.blogspot.com/2012/08/blog-post_25.html

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  26. बहुत सुन्दर
    भावमयी अभिव्यक्ति...अमृता जी आभार..

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  27. मिल जाए कुछ
    पिघले-पिघले से
    शब्द
    तो चट्टान भी
    भला खुद को
    कैसे रोक सकेंगे
    गीला होने से .WAKAI MEIN...NISHBD HOON YE PADH KAR..

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  28. बस
    मिल जाए कुछ
    पिघले-पिघले से
    शब्द
    तो चट्टान भी
    भला खुद को
    कैसे रोक सकेंगे
    गीला होने से .
    विचारों का अर्क निकल डाला .खुबसूरत भावों के साथ आपने कह दी सभी कही अनकही बातें

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  29. लगता है आज मेरे दिल का हाल कह दिया ………बेहतरीन अभिव्यक्ति।

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  30. सच कहा है ... कुछ भीगे भीगे शब्द ... हिला सकते हैं पर्वत को भी ... सीलन की तो बात ही के ...

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  31. बेहतरीन अभिव्यक्ति अमृता जी

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  32. चातक ह्रदय की विह्वलता भावों की बूंदों को शब्दों में क्या खूब पिरोती है !

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  33. बहुत सुंदर यात्रा..शब्दों से भावों तक की..भावों से आगे उस अनाम लोक तक की..आभार !

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  34. भावपूर्ण रचना, बधाई.

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