Social:

Sunday, July 8, 2012

सबकी अपनी मर्जी...


सबकी  अपनी  मर्जी
सबका   अपना   ढंग
कोई     मारे     सीटी
कोई     फोड़े    मृदंग

बेसुरा      छेड़े     सुर
बेताल     देवे     संग
लकवा    मारा   नाच
फड़के      अंग - अंग

दाद,   खाज,  खुजली
खूब     जमाये     रंग
मन-मौजी     मलहम
और    मिलाये    भंग

बेमौसम   फूल   खिले
कौन     करे    शैतानी
कैसे   छिपाए  पतझड़
हँफनी   भरी    हैरानी

मुश्किल  में  मानसून
किससे    माँगे   पानी
छीछालेदर   सुन-सुन
और    बढ़ी   परेशानी

राग-मल्हार    छेड़कर
दुश्मनी   किसने ठानी
अब      नहीं    चलती
उसकी   ही  मनमानी

आसमान    सा   हुआ
दमड़ी      का      दाम
रिश्वत   खाए  बादल
भूले    अपना    काम

कंबल    तले   लेटकर
केवल     करे   आराम
मौसम     पैर    दबाये
ठोंके     जोर   सलाम

दलाल     बन     हवा
खींचे   सबका    चाम
कितना    जहर   बाँटे
राहत   कमाए   नाम

लटापटी    खूब    करे
धागा     बिन    पतंग
झुका      रहे     तराजू
चढ़ा     हुआ    पासंग

दहाड़      मारे     दहाड़
तुनका    हुआ    उमंग
आवाज़   चुप्पी    खाए
गूंगा    मचाये   हुडदंग

सींकिया मलखंभ  चढ़े
दबका    हुआ    दबंग
देख  बदलती  दुनिया
खरबूजा  कितना  दंग

सबकी    अपनी   मर्जी
सबका    अपना    ढंग
कोई       चढ़े      सीढ़ी
कोई        करे       तंग .

46 comments:

  1. वाह अमृता जी वाह........
    बढ़िया रचना...

    अनु

    ReplyDelete
  2. मौसम ने हास्य का रंग कविता पर छोड़ा है. कविता उच्मछृंखल है लेकिन नए बिंबों के साथ चंचल हास्य छोड़ गई है. वाह...खू़ब लिखी है नए रंग की कविता.

    ReplyDelete
  3. अमृता जी, इतना ही कहूँगा-
    आनंद आ गया.

    ReplyDelete
  4. अलग अलग हैं छेड़े तान,
    जय जय जय जय, जय भगवान।

    ReplyDelete
  5. Amrita,

    AAJ KI STITHI AUR MAUSAM KAA VYANGAATMAK VYAGHYAAN ACHCHHA LAGAA.

    Take care

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब
    नया और अनूठा अंदाज़

    ReplyDelete
  7. मुश्किल में मानसून
    किससे माँगे पानी
    छीछालेदर सुन-सुन
    और बढ़ी परेशानी
    बे हया + आवारा बादल
    साथ नहीं दे रहे बेचारा मानसून
    बहुत खूब .... उत्तम अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  8. सुंदर और मनमौजी हायकू

    ReplyDelete
  9. क्या बात है वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-935 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

    ReplyDelete
  10. धार दार कटाक्ष .... बढ़िया प्रस्तुति

    ReplyDelete
  11. हास्य और मानसून का मिला - जुला सुंदर रंग... मनमोहक प्रस्तुति... शुभकामनायें

    ReplyDelete
  12. लाजवाब अमृता!!
    बहुत सुंदर प्रयोग। आपके एक कुशल कवि होने के नित नए प्रयोग हमें अचंभित करते रहते हैं।

    रिश्वत खाए बादल
    भूले अपना काम
    बहुत सुंदर प्रयोग।

    ReplyDelete
  13. बहुत बढिया
    हाहहाा
    अच्छी रचना

    ReplyDelete
  14. मेरी मर्जी......

    कुछ भी कहिये...

    पर आप तो शब्दों के कान पकड़ कर उसे सीधे अपने पोस्ट पर ले आई हैं.....

    ReplyDelete
  15. रिश्वत खाए बादल ,भूले अपना काम ,...इसके अलावा भी बड़े अभिनव प्रयोग और बिम्ब आपने इस रचना में उकेरें हैं ,बढिया से भी बढिया प्रस्तुति .
    कृपया यहाँ भी पधारें -

    शुक्रवार, 6 जुलाई 2012
    वो जगहें जहां पैथोजंस (रोग पैदा करने वाले ज़रासिमों ,जीवाणु ,विषाणु ,का डेरा है )

    ReplyDelete
  16. मुश्किल में मानसून
    किससे माँगे पानी
    छीछालेदर सुन-सुन
    और बढ़ी परेशानी...
    sabhi panktiyaan prabhavshali hain ...

    ReplyDelete
  17. आप ऐसा भी लिख लेती हैं आनंद आ गया अति प्रभावशाली राग आपने छेड़ दिया मन भीग गया

    ReplyDelete
  18. बहुत सुन्दर लगी आपकी रचना ... गतिशील, छंदमय ...

    ReplyDelete
  19. बहुत सुन्दर सृजन , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई .

    ReplyDelete
  20. jiskko jisaa bhaaye visaa karne do
    khud ko mast malang rahne do

    ReplyDelete
  21. वाह क्या बात है.बहुत सुन्दर रचना.


    मोहब्बत नामा
    मास्टर्स टेक टिप्स

    ReplyDelete
  22. सींकिया मलखंभ चढ़े
    दबका हुआ दबंग
    देख बदलती दुनिया
    खरबूजा कितना दंग

    सबकी अपनी मर्जी
    सबका अपना ढंग
    कोई चढ़े सीढ़ी
    कोई करे तंग .

    वाह अमृता जी, कविता आपकी ऐसे पढ़ी, जैसे चढ़ी हो भंग...

    ReplyDelete
  23. वाह ... यह रंग तो सब पर छा गया ...

    ReplyDelete
  24. वाह जी वाह ।

    ReplyDelete
  25. सब अपनी मर्जी के मालिक ..
    बहुत बढ़िया रचना ..

    ReplyDelete
  26. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १०/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आप सादर आमंत्रित हैं |

    ReplyDelete
  27. सबकी अपनी मर्जी
    सबका अपना ढंग
    कोई चढ़े सीढ़ी
    कोई करे तंग .

    ....बहुत खूब! एक अलग ही रंग...

    ReplyDelete
  28. वाह वाह |||
    बहुत बढ़िया ,,, मजेदार....
    :-)

    ReplyDelete
  29. बेहतरीन कविता। व्यंग्य और हास्य के रंगो से सराबोर करती। बारिश के पहले मानसून के बिलंबित ताल में होने के संदर्भ में राग मल्हार को आड़े हाथ लेती हुई। कविता का मर्म- देख बदलती दुनिया...खरबूजा कितना दंग
    पंक्तियों में उजागर होता है। मुहावरों का पलटवार करने की कला का सुंदर उदाहरण। स्वागत है।

    ReplyDelete
  30. सींकिया मलखंभ चढ़े
    दबका हुआ दबंग
    देख बदलती दुनिया
    खरबूजा कितना दंग

    सबकी अपनी मर्जी
    सबका अपना ढंग
    कोई चढ़े सीढ़ी
    कोई करे तंग .
    हाँ अमृता जी.... देखो दुनिया के बदले हुए रंग ....शमशान में नाचे कोई... कोई बजाये मृदंग
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

    ReplyDelete
  31. ha ha.. ekdum mast...
    maza aa gaya... apne aap mein behtareen kawita.. behtareen prayog...


    शुक्रिया ज़िन्दगी.....

    ReplyDelete
  32. वाह ... सभी चंद बेजोड ... एक से बढ़ के एक ... लाजवाब अभिव्यक्ति ... विभिन्न पहलुओं को बाँधा है इन छंदों में ...

    ReplyDelete
  33. आसमान सा हुआ
    दमड़ी का दाम
    रिश्वत खाए बादल
    भूले अपना काम

    सबकी अपनी मर्जी
    सबका अपना ढंग

    बहुत खूब, सुंदर !!

    ReplyDelete
  34. कबीराना तेवर हैं रचना के अंग अंग ,
    'तन्मय' हो पढ़ पढ़ ,सब लिखाड़ी दंग .बहुत बढ़िया कबीर की उलटवासी सी प्रस्तुति है अमृता जी तन्मय आपकी .बधाई स्वीकार करें .

    ReplyDelete
  35. लटापटी खूब करे
    धागा बिन पतंग
    झुका रहे तराजू
    चढ़ा हुआ पासंग

    दहाड़ मारे दहाड़
    तुनका हुआ उमंग
    आवाज़ चुप्पी खाए
    गूंगा मचाये हुडदंगलटापटी खूब करे
    धागा बिन पतंग
    झुका रहे तराजू
    चढ़ा हुआ पासंग

    दहाड़ मारे दहाड़
    तुनका हुआ उमंग
    आवाज़ चुप्पी खाए
    गूंगा मचाये हुडदंग
    behattarin aur anokhi rachana.

    ReplyDelete
  36. मजेदार प्रयोग , विडंबना , बरजोरी , रंगबाजी , मक्कारी , सब तो इकठ्ठा है यहाँ . आपके बहु आयामी लेखन की प्रतिनिधित्व करती रचना .

    ReplyDelete
  37. आसमान सा हुआ
    दमड़ी का दाम
    रिश्वत खाए बादल
    भूले अपना काम

    कंबल तले लेटकर
    केवल करे आराम
    मौसम पैर दबाये
    ठोंके जोर सलाम

    विषमताओं की सुन्दर छंदमयी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  38. सबकी अपनी मर्जी
    सबका अपना ढंग
    कोई चढ़े सीढ़ी
    कोई करे तंग .

    वाह अमृता जी ....ज़ोरदार ...जबर्दस्त ...!!
    प्रभावी रंग छोड़ा है कविता ने ...!!

    ReplyDelete
  39. something very new .
    interesting and nice one.

    ReplyDelete
  40. बाप रे ई तो रउरा बिल्कुल अलग मिजाज़ में दिखी हैं आज तो आप ..
    दोहों के मलखम्ब गाड़ दिए .....
    गज़ब एक से बढ़कर एक ......

    ReplyDelete
  41. अद्भुत/रोचक सृजन....
    आनंद आ गया...
    सादर।

    ReplyDelete