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Sunday, June 3, 2012

पुन:पुन:...


तुममें खोई थी
कुछ बीजों को बोई थी
अब फूल खिलें हैं
काँटों में भी उलझे हैं....
तुममें खोती रही
बस तुम्हें
फूल ही फूल देती रही
और कांटे चुभोती रही....
चुभे काँटे हैं
दर्द देंगे ही
लाख मना करूँ
पर तुमसे कहेंगे ही....
तब तुम बाँहों में मुझे
यूँ घेर लेते हो
उन्हीं फूलों को
बिखेर देते हो
और कहते हो -
भूल जाओ दर्द को....
ये जिद ही है मेरी
कि मैं
तुममें यूँ ही खोती रहूँगी
और काँटे चुभोती रहूँगी
बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी
पुन:पुन:
बस तेरे बाँहों के घेरे में
होती रहूँगी और खोती रहूँगी .

47 comments:

  1. तुममें खोई थी कुछ बीजों को बोई थी अब फूल खिलें हैं काँटों में भी उलझे हैं.... तुममें खोती रही बस तुम्हें फूल ही फूल देती रही और कांटे चुभोती रही.... चुभे काँटे हैं दर्द देंगे ही लाख मना करूँ पर तुमसे कहेंगे ही.... तब तुम बाँहों में मुझे यूँ घेर लेते हो उन्हीं फूलों को बिखेर देते हो और कहते हो - भूल जाओ दर्द को.... ये जिद ही है मेरी कि मैं तुममें यूँ ही खोती रहूँगी और काँटे चुभोती रहूँगी बस तुम्हें फूल देती रहूँगी पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी पुन:पुन: बस तेरे बाँहों के घेरे में होती रहूँगी और खोती रहूँगी .

    यूं ही बढ़ता रहेगा मेरी बाहों का घेरा मुग्धा भाव लिए उस वायुवीय प्रेम को छूने एक परिकथा पिरोने जो ,तुम हो ...बढ़िया आत्म मिलन की रचना .
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    इस साधारण से उपाय को अपनाइए मोटापा घटाइए ram ram bhai
    रविवार, 3 जून 2012
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  2. तुममें यूँ ही खोती रहूँगी
    और काँटे चुभोती रहूँगी
    बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
    पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी,,,

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,,

    RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,

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  3. कोमल प्रवाहमयी भाव..

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  4. बहुत सुंदर रचना.... वाह!
    सादर।

    सारे मौसम एक से, क्या पतझड़ मधुमास।
    खारों के ही मध्य है, भँवरों का आकाश।।

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  5. बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ....आभार

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  6. Amrita,

    PREM BANDHAN KI ZID SUNDAR SHABDON MEIN PIROYI.

    Take care

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  7. जीवन में उमंग का संचार करती भावनाओं को सुंदरता से अभिव्यक्त करती कविता।

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  8. तुममें यूँ ही खोती रहूँगी
    और काँटे चुभोती रहूँगी
    बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
    पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी,,बहुत ही खुबसूरत
    और कोमल भावो की अभिवयक्ति..

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  9. ...बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
    पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी



    आँखों में जल रहा मगर, दिखता नहीं धुआं



    सच में, इस सौगात की उम्मीद नहीं थी.....

    बेहतरीन पोस्ट...

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  10. जीवन इस सच से महरूम क्यों हो
    बहुत ख़ूबसूरत रचना

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  11. बहुत खूब ..सार्थक शब्द रचना

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  12. बस इसीलिए तो इसे बंधन कहते हैं .....हर कोई चाहे अनचाहे बंधा रहना चाहता है इस पाश में....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति अमृताजी

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  13. muhaabbat ka ek hee usool na kaate naa phool...aapkee rachnadharmita kee nadi kee tamam uthtee hui behtarin lehron me se ek ...sadar badhayee aaur amanntran ke sath

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  14. ये जिद ही है मेरी
    कि मैं
    तुममें यूँ ही खोती रहूँगी
    और काँटे चुभोती रहूँगी
    बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
    पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी.....जिद्द में आत्म विश्वास झलकता है..सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  15. भाव और शब्द सौन्दर्य . बहुत सुँदर

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  16. काँटों के चुभन का दर्द भी अच्छा लगता है.. अगर देनेवाले प्रेम और स्नेह के सच्चे फूल के साथ दे रहा हो..
    सुन्दर रचना
    सादर

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  17. फूलों और काटों से लगातार बिखरती उन परागकणों का क्या जो जीवन देती है और याद दिलाती रहती है इस गीत को ...
    "लेना होगा जनम कई कई बार ...
    अत्यंत ही जीवंत और ममर्स्परसी भाव.शब्द छोटे पड़ गए हैं .अमृताजी कांटे तो नहीं पर फूलों को स्वीकार करें .

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  18. संयोग वियोग और आत्मोत्पीडन की यह कैसी निर्ममता :(

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  19. इसी कों तो प्रेम कहते हैं ... दूसरे के सुख के लिए खुद काँटों कों गले लगाना ... मन की भावनाओं का दर्पण है ये रचना ...

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  20. जिसको फूल की आकांक्षा है उसे काँटे तो झेलने ही होंगे...दोनों साथ साथ ही फबते हैं..

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  21. वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  22. बहुत प्यारी सी जिद है ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  23. कभी कभी सोचता हूँ कि तुम इतना बेहतर कैसे लिख लेती हो कि मन तुम्हारी पंक्तियों के शब्दों में बहने लगता है और सोचता है कि सुबह न हो .....मुझे कुछ और तो नहीं सूझ रहा है अभी कहने के लिए .

    सलाम कबुल करे अपनी इस नज़्म के लिए ..काश मैं इतनी अच्छी नज्मे लिख पाता.

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  24. शाश्वत प्रेम....बधाई

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  25. ..बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
    पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी
    वाह ... बेहतरीन ।

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  26. प्यार की जिद भी बहुत जिद्दी होती है |

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  27. बहुत सुंदर भाव अमृता जी...
    और बेहतरीन शब्द संयोजन......

    अनु

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  28. बहुत सुंदर भाव अमृता जी...
    और बेहतरीन शब्द संयोजन......

    अनु

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  29. क्यू अनीता जी की बात बिलकुल सही है.....इस विरोधाभास पर लिखी आपकी ये शानदार पोस्ट बहुत ही पसंद आई ।

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  30. .....
    बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
    पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी
    पुन:पुन:
    बस तेरे बाँहों के घेरे में
    होती रहूँगी और खोती रहूँगी

    बहुत सुंदर ....
    क्या खूब लिखा है आपने, बधाई !!

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  31. प्रेम गर फूलों से है ...तो कांटे भी प्रिय हैं मुझे .....


    यही वफ़ा का सिला है ..तो कोई बात नहीं ...
    तुम्हीं ने दर्द दिया है तो कोई बात नहीं ...

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  32. बस यही इसी हाल में जीना स्वीकार लिया है.... प्रेम के कुछ अलग से भाव

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  33. बेहतरीन और प्रशंसनीय .

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  34. फूल और काँटें

    बहुत ही उम्दा प्रस्तुति है.
    आपका अंदाज अनोखा होता है.

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  35. आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
    आपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...
    आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......
    मेरा एक ब्लॉग है

    http://dineshpareek19.blogspot.in/

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  36. होती रहूँगी और खोती रहूँगी .
    ....
    इतना ही पर्याप्त है !

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  37. बहुत सुंदर भाव, बहुत ही उम्दा प्रस्तुति है***

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  38. तुममें यूँ ही खोती रहूँगी
    और काँटे चुभोती रहूँगी
    बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
    पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी

    .....समर्पित प्रेम की बहुत भावमयी प्रस्तुति...बहुत सुन्दर

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  39. तुममें यूँ ही खोती रहूँगी
    और काँटे चुभोती रहूँगी
    बस तुम्हें फूल देती रहूँगी
    पुनर्नव पीड़ा पिरोती रहूँगी

    जिद्दी प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति

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  40. बहुत खूब ||||
    कोमल भाव व्यक्त करती रचना...

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  41. आप एक समर्थ सर्जक हैं।
    इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं।

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  42. ये रचना अच्छी लगी है मुझे |

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  43. प्रेम में लिपटे सुख-दुख की निरंतर गाथा कहती सुंदर कविता. बहुत खूब.

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  44. तुममें खोई थी
    कुछ बीजों को बोई थी
    अब फूल खिलें हैं
    काँटों में भी उलझे हैं....
    तुममें खोती रही

    बहुत सुन्दर

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  45. जिद ....!!! बहुत खूबसूरत

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