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Wednesday, March 21, 2012

बस कोई ...


सत्यश :
जो जैसा है
समर्पित है
स्वयं सत्य को
बस कोई
पूर्ण प्रमाण
देने वाला चाहिए...

सुना है
रोशनी तो
पलक पर ही
विराजती है
बस कोई
दक्ष दस्तक
देने वाला चाहिए....

गिरि पर
गर्भिणी गंगोत्री में
दिखती नहीं गंगा
बस कोई
सूक्ष्म नयन
देखने वाला चाहिए....

कुछ बूंदें
जैसे-तैसे
हाथ तो लगी है
बस कोई
सागर का
पक्का पता
बताने वाला चाहिए...

कहते हैं
काव्य में
मधुरता और
मादकता होती है
बस कोई
संज्ञा सिद्ध
करने वाला चाहिए....

अभी भी
बस एक
जरा सी कड़ी
खोई-खोई सी है
बस कोई
एक आखिरी बात
जोड़ने वाला चाहिए .  

56 comments:

  1. वाह भाई वाह ।

    कोई बताने वाला चाहिए --

    जबरदस्त प्रस्तुति ।

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  2. काश कोई हर पग पर ऐसे ही साथ देता रहे।

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  3. अभी भी
    बस एक
    जरा सी कड़ी
    खोई-खोई सी है
    बस कोई
    एक आखिरी बात
    जोड़ने वाला चाहिए . kafi sundar

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  4. आहा!
    हर कार्य की सम्पूर्णता के लिए किसी का साथ ज़रूरी है.. बेहतरीन!

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  5. waah atti sunder .......baaten to hai bahut par sunane wala chahiye
    dil ke jajbato ko kalam dwaralikhne wala chahiye
    aapne is bar to sab kah diya ......par ab intjar khatm hona hi chahiye ........sunder amrita ji .............:))))))))))))

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  6. वाह ...बहुत ही बढिया।

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  7. बस कोई चाहिए पूर्णता को पूर्णता जाननेवाला

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  8. behad khoobsurat kavita likhi hai.....

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  9. talash TALASH talash .
    search to right person
    and search to right object.
    very much difficult but if we are
    right than it comes to us.
    I HOPE YOU MUST FIND THE RIGHT PERSON
    WITH RIGHT OBJECT AS PER YOUR DESIRE.

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  10. वाह क्या बात कही है ………जरूर मिलेगा आखिरी कडी जोडने वाला परम से मिलाने वाला

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  11. बहुत खूबसूरत!!!
    गिरी पर गर्भिणी गंगोत्री में दिखती नहीं गंगा..
    बस कोई सूक्ष्म नयन देखने वाला चाहिए...

    लाजवाब...

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  12. एक आखिरी बात जोड़ने वाला चाहिए ...इसी एक की प्रतीक्षा में आत्मा ठिठकी हुई है..बस एक पूर्ण घटना !!! :)

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  13. मनके भी है,
    मोती भी है,
    बस जरा
    मन की गांठे खुल जाएँ ,
    सिरे जुड जाएँ...
    जुड जाए हर कड़ी एक - दूसरे से.

    प्रभु आपकी अभिलाषा पूर्ण करे.
    आपकी कविता-संग्रह कब प्रकाशित हो रही है ?? अग्रिम शुभकामनायें.

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  14. जोड़ने वाला जरूर आयेगा...

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  15. बहुत खूबसूरत!!!
    गिरी पर गर्भिणी गंगोत्री में दिखती नहीं गंगा..
    बस कोई सूक्ष्म नयन देखने वाला चाहिए...
    सौन्दर्य की सार्थकता के लिए दृष्टा भी तो चाहिए ,देखना कितना भला हो ,देखने वाला चाहिए ,हाथ फैले सब खड़े हैं ,दाता एक चाहिए . अच्छी विचार सरणी है .कलकल बहती सरयू सी .

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  16. सच है हर चीज की कद्र होती है बस कद्रदान होना चाहिए ...

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  17. कितना सुँदर है सब कुछ . अद्भुत . अप्रतिम

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  18. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

    नीरज

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  19. बस कोई संज्ञा सिद्ध करने वाला चाहिए....
    वाह! बहुत सुन्दर रचना....
    सादर.

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  20. सकारात्मकता से ही पूर्णता मिलती है ....
    बहुत सुंदर रचना ....अमृता जी ...

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  21. सुन्दर प्रस्तुति.... बहुत बहुत बधाई.....

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  22. पूर्णता की चाह... अद्भुत भाव...

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  23. बहुत सुंदर
    क्या कहने

    कहते हैं
    काव्य में
    मधुरता और
    मादकता होती है
    बस कोई
    संज्ञा सिद्ध
    करने वाला चाहिए....

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  24. यह रचना हमें नवचेतना प्रदान करती है और नकारात्मक सोच से दूर सकारात्मक सोच के क़रीब ले जाती है।

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  25. प्रभावशाली रचना

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  26. सुना है रोशनी तो पलक पर ही विराजती है कोई दक्ष दस्तक देने वाला चाहिए ....
    सब दृष्टि और आत्मबल का खेल है हर काम सिद्ध हो सकता है ..बहुत सुन्दर शब्द संयोजन और भाव

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  27. सुंदर अभिव्यक्ति.

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  28. वही 'एक ज़रा सी कड़ी' कभी कभी जीवन को पूरी तरह परिभाषित करने में कामयाब हो जाती है ..बशर्ते वह सिरा मिल जाये ....सुन्दर!

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  29. बस कड़ी जुड़ जाए तो सब बात पूरी है चाहे वह “बस कोई” ही क्यों न हो।

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  30. ...ज़रा सी कड़ी खोई है कहीं...
    इतने अछे आत्म-मंथन से निसंदेह वो भी मिल जाएगी :)
    बहुत ही सुन्दर भाव हैं, अनुपम रचना है!

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  31. .

    बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने.
    बधाई !

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  32. वाह क्या कहने ..एक अमर रचना ..
    याद रहेगी बजूद रहने तक की ...
    किसने रचा ली आपसे यह ?
    यह मानव के वश की तो नहीं ..जैसे वेद अपौरुषेय कहे गए हैं ..
    यह रचना देवत्व की देहरी छूती है ...अनिर्वचनीय ..साधुवाद !
    इनाम देने का मन हो आया ! क्या दूं?

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  33. बहुत ही सुन्दर भाव ----------नवरात्री की शुभकामनायें

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  34. किसी का साथ मिल जाये तो हर ख़ुशी दुगुनी हो जाती है....
    सुकोमल भाव,बेहतरीन अभिव्यक्ति....

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  35. गूंगे के गुड सी अनिवर्चनीय है यह रचना बस कोई समझने वाला चाहिए .........यहाँ वहां कितना कुछ बिखरा है बस कोई समेटने वाला पात्र चाहिए .कृपया यहाँ भी कर्म फरमाएं -
    ram ram bhai

    बुधवार, 21 मार्च 2012
    गेस्ट आइटम : छंदोबद्ध रचना :दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है .

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  36. इस आख़िरी कड़ी को जोडने वाला ही तो चाहिए...बहुत सुंदर प्रस्तुति..

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  37. अभी भी
    बस एक
    जरा सी कड़ी
    खोई-खोई सी है....
    बस कोई
    एक आखिरी बात
    जोड़ने वाला चाहिए...

    खोई सी कड़ी को जोड़ने वाला ही आखिर तक याद किया जाएगा...
    आपने नि:संदेह सुन्दर शब्दों की कड़ी पिरोई है...

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  38. वाह बहुत ही सुन्दर थोडा सा और कोई सहारा मिल जाये तो सब कुछ हो जाये।

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  39. बस कोई आखरी बात जोड़ने वाला चाहिए ... वाह !!

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  40. अदभुत है आपका चिंतन,अनुपम है आपका लेखन.
    पढकर मन गदगद हो जाता है.
    बहुत बहुत आभार,अमृता जी.

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  41. bahut khoob ...bahut badhiya kaha AApne Amrita....main bhi aise hi khuch pal dhoondh raha hun....kuch aaj dhoondh raha hun...air kuch kal dhoondh raha hun....

    Par milta nahi wo "Nayaab"....fir dhoondhte rahiye aur likhte rahoye...ek ek shabd nayaab...umda...bahut umdaa...

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  42. अभिनव शब्द प्रयोग और अर्थ का एक नाम है अमृता तन्मय .
    आपकी चर्चा आज यहाँ भी है -
    क्वचिदन्यतोSपि...

    अर्थात मेरे साईंस ब्लागों से अन्य,अन्यत्र से भी ....
    Saturday, 24 March 2012
    चिट्ठाकार चर्चा की नीरवता को तोड़तीं अमृता तन्मय!
    http://mishraarvind.blogspot.in/

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  43. मौलिक कथ्यों की सुंदर अभिव्यक्ति।

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  44. यह अमृता तन्मय के मुहावरे की कविता है. दार्शनिक भी और काव्यात्मक भी. आजकल ऐसी कविताएँ कम ही लिखी जाती हैं.

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  45. क्या कमाल की कड़ी ढूंढी है, 'आखिरी बात' में! ..लाज़वाब।

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  46. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति और बहुत ही सामायिक भी.

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  47. अद्भुत रचना .... बहुत गहनता से लिखी है ...

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  48. काव्य में मधुरता और मादकता सिद्ध कर दी आपने.बधाई.....

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  49. एक ज़रा सी कड़ी ही तो जिंदगी का सत्य है, बस उतना सा कोई जोड़ दे फिर तो जीवन सफल, बहुत सुन्दर और सशक्त रचना. बधाई.

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  50. व्यक्त-अव्यक्त औऱ प्रत्यक्ष-परोक्ष के बीच के संबंधों की पड़ताल करती कविता। महसूसने वाले मन की जरूरत को रेखांकित करती हुई। लेकिन जो प्रत्यक्ष दिख रहा है। उससे भी तो मुख नहीं मोड़ा जा सकता। उसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए। आपकी बाल सुलभ सहजता और अधीरता सजीव हो उठी है। परियों के इंतजार वाली कविता जैसा आत्मविश्वास नजर आता है। अज्ञेय को जानने और परिभाषित करने की मानवीय जिजीविषा को शब्द देती कविता पढ़कर बहुत अच्छा लगा। लेकिन जैसा कि आपने कुद कहा है कि कोई आखिरी कड़ी, कोई अंतिम बात आनी बाकी है। तो आपने अगली कविता में उसे मूर्त रूप देने की कोशिश की है कि अगर लिख सको तो...महाकाव्य लिखना। स्वागत है।

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