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Friday, February 17, 2012

द्यूत- बिसात


मन के
हस्तिनापुर में
हमेशा बिछी रहती है
द्यूत - बिसात ..
तार्किक अड़चनों में
उलझा अर्जुन
चुप है
हारे हुए हर दाँव की
लगती ऊँची बोली पर
और शातिर के
पक्ष में घोषित
शापित परिणाम पर ...
फिर भी
इस द्वन्द-युद्ध में
गांडीव उठाकर
कर रहा है वह
कृष्ण की प्रतीक्षा
जो कहीं मगन है
अपने ही रासलीला में .



द्यूत---जुआ 

43 comments:

  1. मन के अन्दर तो शह मात चलती रहती है ...पर जब द्द्युत के पासे फेंके जाते हैं तो सारथी के वचन याद आते हैं

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  2. कान्हा बेशक मगन थे...मगर द्रौपदी की पुकार तो उन्होंने ही सुनी ना...

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  3. महाभारत की पृष्ट भूमि का खुबसूरत अंकन द्युत क्रीडा
    सराहनीय .

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  4. man aur prashn
    cholee daaman kaa saath
    ek hal ho doosraa khadaa ho jaataa

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  5. बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ,बधाई

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  6. यह लीला तो ना जाने कितने रूपों में चलती रहती है ...कभी हम अनुभव करते हैं कभी नहीं ....? बस इतना सा फर्क है .....!

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  7. वाह! बहुत सुन्दर...
    सादर.

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  8. jab har sahara toot jaata hai tab bhee uska sahara jarur rahta hai...likhne wale se sahi likha tha dukhdu
    me sumiran sab kare,,,,s............to dukh keahe ko hoy...acchi rachna ke liye sadar badhayee

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  9. उस घटना ने पूरी महाभारत की दिशा बदल दी...सुन्दर चित्रण...

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  10. इस मन के द्वंद्व को तो हृदय रूपी कृष्ण ही थाम सकता है॥

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  11. bahut sunder shabdo mein sanjoi hai rachna....

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  12. वाह, बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।.. धन्यवाद ।

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  13. प्रतीक चयन प्रशंसनीय है

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  14. बढ़िया अभिव्यक्ति

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  15. अनिर्णय की घड़ी में किसी मार्गदर्शक की प्रतीक्षा तो रहती है.

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  16. सुन्दर एवं सराहनीय रचना......
    कृपया इसे भी पढ़े-
    नेता- कुत्ता और वेश्या(भाग-2)

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  17. बहुत सुंदर अभिव्याक्ति

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  18. फिर किशन ने कहा अर्जुन से , मत प्यार जता दुश्मन से . विचारो की तन्मयता, आपकी कविता की पंक्ति दर पंक्ति बढती जाती है . सुँदर प्रभावशाली रचना .

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  19. कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.

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  20. वो कहीं मगन रहें मगर फिर भी साथ ही रहते हैं।

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  21. मन के कुरुचेत्र का सटीक और सजीव चित्रण कमाल की अभिब्यक्ति .हाँ हार तो उसकी होती है जंहाँ कृष्ण नहीं होते.कृष्ण तो हाथे पसारे राह देख रहे हैं .उनके भरोसे निर्भय होकर चले .कहा भी है निर्भर तो निर्भय .प्रसंशा के लिए शब्द नहीं हैं ,

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  22. उस कृष्ण की जो कहीं मगन है अपनी ही रासलीला में..........क्या कहूँ निशब्द कर दिया आपने.....हैट्स ऑफ ।

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  23. अनुपम भाव संयोजन लिए ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  24. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  25. कोई तर्क की दुनिया में फंसा है तो कोई भावनाओं की रासलीला में मगन है.दोनों के बीच समन्वय स्थापित करने में समर्थ व्यक्ति ही सहज हो सकता है. कृष्ण की सारथी वाली भूमिका इसी समन्वय को मूर्त रूप देती है.अच्छी रचना जो हमारे जीवन के द्वंद को शब्द देती है.

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  26. सुंदर अभिव्यक्ति..

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  27. मन ऐसा ही होता है...सोचता कुछ और है और रोचता कुछ और...गंडदेव उठाने की हिम्मत किसी में नहीं होती...आज हर जगह जब भी द्रौपदी छली जाती...क़ृष्ण आते नहीं वस्त्र उढ़ाने उसे...कहते हैं ये तो होता ही रहता है....द्यूत क्रीडा में निमग्न समग्र देश भूल जाता ही की हर व्यक्ति को अपने भीतर के सारथी को जगाना होगा जो उसके रथ को सही दिशा दे...
    अमृता,पुनः झकझोरने के लिए धन्यवाद।

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  28. गहरे भाव।
    सुंदर रचना।

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  29. यह खेल तो जन्म-जन्मांतर ऐसे ही चलता रहेगा. तार्किक और संवेदनशील प्रस्तुति.

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  30. bahut sunder abhivyakti ........yeh to kkel aise hi chalta rahata hai .........sarthak post .badhai

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  31. ज़िंदगी को जुआ हमने बनाया और फिर कृष्ण का इंतज़ार भी करते हैं ...बहुत सुंदर चित्रण

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  32. बहुत दूर तक प्रहार करती उम्दा सोच....

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  33. वाह!!!!!अमृता जी बहुत अच्छी प्रस्तुति, भावपूर्ण सुंदर रचना,....

    MY NEW POST ...सम्बोधन...

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  34. तार्किक अड़चनों में
    उलझा अर्जुन!
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

    सादर

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  35. वाह! बहुत गहन चिंतन और उसकी प्रभावी अभिव्यक्ति..

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  36. बहुत खूबसूरत रचना...हारा जुआरी हर बार ऊँचा दांव लगत जाता है...वो भी भगवान के भरोसे...सुन्दर भाव...

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  37. जहां अर्जुन वही कृष्ण ..बिना इस संयोग के संसृति का विस्तार कहाँ ?

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  38. अर्जुन क्या प्रतीक्षा ही करता रहेगा...बिन बुलाए कान्हा नहीं आते...

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  39. यदा यदा ही धर्मस्य ....
    कृष्ण पहुंचेंगे ही यथासमय ....
    अद्भुत रचना ....

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  40. कृष्ण तो रास लीला में भी चौकन्ने रहते हैं ... बस अर्जुन के मन की पुकार सुनना चाहते हैं ...

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  41. मन के हस्तिनापुर का एड्रेस मिल सकता है क्या, हम भी जाकर देखें ज़रा :P

    जोक्स अपार्ट,

    वंडरफुल कविता!!!

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