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Tuesday, January 17, 2012

मान


मन की मजबूरियों की
क्या कीमत लगाओगे
या बात-बात पर
नपे-तुले व्यावहारिकता की
चादर ओढाओगे...
ध्रुवों पर कील गाड़कर
आस्था-विश्वास को
बाँध आओगे और
उन्हें जोड़ने के लिए
कच्चा-पक्का पुल बनाओगे
फिर आग्रहों का सहारा लेकर
भारी पाँव को घसीटोगे
तो सारी जुगत भीड़ जायेगी
खुद को बचाते हुए
मुझ तक आने में ही...
जैसे-तैसे आ तो जाओगे
पर सोच लो क्या दोगे
रास्ते का जोखिम भरा ब्योरा
या जुगत का दांव-पेंच
या फिर उसी चादर की
देने लगोगे दुहाई पर दुहाई..
जबकि मैं उसी ध्रुव पर
हर चादर उताड़े खड़ी हूँ
हर कीमत या जुगत को
आग्रहों के अलाव में झोंक कर
बस थोड़ी सी गर्मी के लिए...
जो थोड़ी सी गर्मी
तुम्हारी गर्म साँसों की
और तुम्हारी नर्म बाहों की मिले
तो सदियों तक यूँ ही
यहीं खड़ी रहूँगी
क्योंकि मैंने
मान दिया है
मन की मजबूरियों को
और जान लिया है तुम्हें .

43 comments:

  1. इंतेज़ार में जो मज़ा है वो मिलने में कहां ?

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  2. प्रबल और स्पष्ट भाव मन के .......अंगद के पाँव की तरह जमा हुआ वजूद ...

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  3. वाह!!
    बेहतरीन भाव...

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  4. बहुत सुंदर भाव संजोये है और उनकी अभिव्यक्ति भी बहुत सुंदर ..

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  5. मान मिले हर भावों को अब।

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  6. किसी की मजबूरियों का समझना और उन्हें मान देना ... कम ही समझ पाते अहिं ...
    भाव लिए सुन्दर रचना ...

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  7. मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......

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  8. वाह!
    बहुत बढ़िया!
    अपनी सुविधा से लिए, चर्चा के दो वार।
    चर्चा मंच सजाउँगा, मंगल और बुधवार।।
    घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
    लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!

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  9. सुन्दर ...
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..
    kalamdaan.blogspot.com

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  10. सहज अभिव्यक्ति

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  11. बहुत सुन्दर...मज़बूरी को मान देना..वाह क्या भाव है

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  12. बहुत सुन्दर .
    पढ़कर अच्छा लगा.

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  13. मन की मजबूरियों की कोई कीमत नहीं होती ... वह एक एहसास है , जिसकी समझ कम लोगों में होती है

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  14. हर हाल में ख़ुशी , हर हाल में मान .

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  15. समर्पण का प्यारा सा एहसास .........

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  16. umda...shayad pyar ka gendered perspective hai, ek insaan ko sadiyon bane tasweer mein dhalne ki koshish aur us insaan ke us tasweer/ imagery ki marubhumi mein kayam rehne ki koshish. koshishen zaroori hain apna wazood bachaye rakhne ke liye. bahut sateek kavita. sadhuvaad

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  17. बढ़िया रचना , ख़ूबसूरत भाव !

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  18. kyunki
    maine maan diya hai
    mann ki majburiyon ko
    aur gherai se jaan liya hain
    bahut khoob....

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  19. मन की मजबूरी और ध्रुवों पर इंतजार... बहुत सुंदर भाव और शब्दों के माध्यम से दिल की गहराई से निकली कविता...

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  20. गहरे भाव।
    सुंदर रचना।

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  21. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  22. मजबूरी ....न जाने क्यों ये शब्द अच्छा सा नहीं लगता......कई बार कमजोरियों को मज़बूरी का नाम भी दे दिया जाता है.....इंतज़ार का लुत्फ़ और उसकी घुटन को दर्शाती ये पोस्ट बेहतरीन है........शानदार|

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  23. जबकि मैं उसी ध्रुव पर
    हर चादर उताड़े खड़ी हूँ
    हर कीमत या जुगत को
    आग्रहों के अलाव में झोंक कर
    बस थोड़ी सी गर्मी के लिए...
    जो थोड़ी सी गर्मी
    तुम्हारी गर्म साँसों की
    और तुम्हारी नर्म बाहों की मिले
    तो सदियों तक यूँ ही
    यहीं खड़ी रहूँगी
    क्योंकि मैंने
    मान दिया है
    मन की मजबूरियों को
    और जान लिया है तुम्हें .
    बहुत खूब ....क्योंकि मैंने भी मन की मजबूरी को जान लिया है मान लिया है पहचान लिया है तुम्हे ...सुन्दर प्रयोग भूमि .

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  24. आपकी प्रस्तुति गहरे भाव अभिव्यक्त करती है.
    जिन्हें समझने के लिए गहराई में उतरना होगा.
    आपके दिल की गहराई अथाह है.

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  25. प्यार समर्पण ही तो है...शायद !

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  26. अमृता जी बहुत ही सुन्दर और सराहनीय कविता बधाई |

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  27. अमृता जी आपकी सहज अभिव्यक्ति वाली यह कविता बहुत सुन्दर लगी.मन की मजबूरियों को स्वीकारने और उसकी वजह को जानने के बाद तो उम्मीद पर कायम रहना ही बेहतर होगा.

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  28. sach pyar samarpan ki bina adhura hai..
    ..bahut badiya manobhavon ki prastuti..

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  29. nice poem
    bahut khoob

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  30. सम्पूर्ण समर्पण को परिभाषित करती प्यारी रचना ....मजबूरियों को मान देना प्रेम की सार्थकता है

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  31. डाईरेक्ट दिल से --आपकी लेखनी को सलाम

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  32. बहुत सुन्दर और सहज अभिव्यक्ति.....

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  33. बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट " हो जाते हैं क्यूं आद्र नयन पर ": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

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  34. ओह कितनी कोमल कविता है..बहुत सुन्दर :):)

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  35. मैं उसी ध्रुव पर
    हर चादर उताड़े खड़ी हूँ
    हर कीमत या जुगत को
    आग्रहों के अलाव में झोंक कर
    बस थोड़ी सी गर्मी के लिए...
    जो थोड़ी सी गर्मी
    तुम्हारी गर्म साँसों की
    और तुम्हारी नर्म बाहों की मिले
    तो सदियों तक यूँ ही
    यहीं खड़ी रहूँगी
    क्योंकि मैंने
    मान दिया है
    मन की मजबूरियों को
    और जान लिया है तुम्हें .
    नि:शब्द कर दिया इन भावों ने.....

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  36. बड़ी सारी कवितायें पढ़ गया आज आपकी..
    बड़ा अच्छा सा लगा दीदी :)

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  37. यहीं खड़ी रहूँगी
    क्योंकि मैंने......

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