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Saturday, July 16, 2011

उद्यम

कम नहीं हैं
अपेक्षाएं
खुद से ही....
चुनौती की
दोधारी तलवार
आतंरिक एवम
बाह्यरूप से....
खुद को
साबित करने का
एक जूनून भी....
घड़ी-घड़ी घुड़की
घुड़दौड़ में
अव्वल न सही
जगह सुरक्षित कर
दौड़ते रहने का...
साथ ही
लंगड़ी मारने में भी
कुशल होने का......
आखिर
आँख खोलने से
अब तक
पिलाया गया
हर घुट्टी का
असर है.....
जो मूर्च्छा में भी
दोहरे दबाव को
घुसपैठ करा
किसी भी कीमत पर
ऊँच-नीच करके
सफलता के झंडे को
ऊँचा किये रहता है...
और
तराजू के पलड़े को
बराबर करने के लिए
राज़ी-ख़ुशी से
खुद को ही
काट-काट कर
बोटी-बोटी करना
सफल उद्यम
बन जाता है .

45 comments:

  1. ज़बरदस्त लिखा है आपने.

    सादर

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  2. संदेशपरक कविता प्रेरणादायी भी है.

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  3. अच्छी सार्थक अभिव्यक्ति....

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  4. दरअसल सब मानते हैं...हारे को हरि नाम...पर यकीन मानिये रेस का मज़ा रेस में दौड़ने वाले को नहीं...देखने वाले को मिलता है...

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  5. Well written again amrita jee.. keep it up...

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  6. वहीँ कुछ चालाक तराजू के माल
    को चाट कर संतुलन बनाते हैं ||

    बधाई ||


    हर-हर बम-बम, बम-बम धम-धम |
    तड-पत हम-हम, हर पल नम-नम ||

    अक्सर गम-गम, थम-थम, अब थम |
    शठ-शम शठ-शम, व्यर्थम - व्यर्थम ||

    दम-ख़म, बम-बम, चट-पट हट तम |
    तन तन हर-दम *समदन सम-सम || *युद्ध

    *करवर पर हम, समरथ सक्षम | *विपत्ति
    अनरथ कर कम, झट-पट भर दम ||

    भकभक जल यम, मरदन मरहम |
    हर-हर बम-बम, हर-हर बम-बम ||


    राहुल उवाच : कई देशों में तो, बम विस्फोट दिनचर्या में शामिल है |

    चिदंबरम उवाच: इक्तीस माह तो बचाया मुंबई को |
    देश को कब तक बचाओगे ????

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  7. शानदार ! बहुत खूब !!

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  8. दौड़ते रहने का...
    साथ ही
    लंगड़ी मारने में भी
    कुशल होने का......
    हाँ बिलकुल. आजकल मार्कीट में सफलता का यह रहस्य है और कसौटी भी. खूब कहा है.

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  9. अपेक्षाएं खुद से हो तो चुनौती भी खुद को ही देनी पड़ेगी।
    सुंदर प्रस्तुति।

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  10. ekdum bejod..... kya kahun? achcha laga blog ko padh ke... aise hi likha kare....

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  11. This comment has been removed by the author.

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  12. सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया रचना,आभार.

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  13. विचारणीय कविता,
    सुंदर प्रस्तुति। आभार.........

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  14. जीवन में इस तरह का उद्यम तो करना ही पड़ता है।
    अच्छी कविता।

    उद्धम की जगह उद्यम होना चाहिए।

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  15. जब अपेक्षा पूरी करके खुद को शाबाशी देने का आनंद खुद लेना है तो खुद को बोटी-बोटी काटना और दुखी होना भी तो अपने ही हिस्से में आयेगा न !

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  16. उद्यमशीलता तो एडी रगड़ रही है आजकल चाटुकारिता के सामने . इस गलाकाट प्रतियोगिता के दौर में आगे बढ़ने के गुर के साथ दूसरों को आगे ना बढ़ने देने की होड़ लगी है . हम तो रोज दो चार हो रहे है इन दिनों ऐसी प्रतियोगिता से .

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  17. jab baudhikata bhawna par bhaaree pade tab kavita ka dam ghutane lagataa hai , jarooree naheen ki har ek baat kavita mein hee ho .phir bhee sashakt abhivyakti ewam jeewant udrek .

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  18. कल 18/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  19. अमृता जी बहुत प्यारी सी सुन्दर सी कविता पढ़ने को मिली बधाई |

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  20. sarathak rachna,,,
    jai hind jai bharat

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  21. एक सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

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  22. सही कहा है ...शुभकामनायें आपको !

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  23. एकदम दुरुस्त फ़रमाया है......कविता के सहारे ...पर उम्मीद करता हु की यही परिभाश या तो आप नहीं अपनाती होंगी...या अनजाने में अपना रही होंगी तो इससे निकल जाने वाली होंगी...अच्छी कविता..

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  24. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  25. लंगड़ी मर कर आगे निकलने का फार्मूला आजकल कामयाब है सन्देश देती हुई रचना , आभार

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  26. अपने आप से अपेक्षाएँ रखना बुरी बात नहीं,पर उनकी परिपूर्णता बाधित होने की अवस्था में अपने आप को खो देना या अशांत हो जाना कष्टकर होता है...यह भी सत्या है की सही माने में आज के जमाने मे उद्यमी वही है जो कर्म के साथ साथ लंगरी मारने में भी उस्ताद हो....सीधी उंगली से घी निकालने वाले पीछे रह जाते क्यूंकी जरूरत पड़ने पर उंगली टेढ़ा कर घी निकालने वलर बाज़ी मार ले जाते हैं...
    अमृता बहुत ही सही लिखा है आपने...बहुत बढ़िया..बधाई।
    समय मिले तो “कविता की प्रासंगिकता” पर अपना विचार प्रेषित कीजिएगा....शायद मेरी कविता अप्रासंगिक होने से बच जाये।

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  27. बहुत सुंदर रचना और

    तराजू के पलड़े को
    बराबर करने के लिए
    राजी खुशी से
    ही खुद को
    काट काट कर
    बोटी बोटी करना
    सफल उद्यम
    बन जाता है.

    वाकई बहुत बढिया

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  28. अमृता जी.........छा गए........हैट्स ऑफ........बहुत ही शानदार........और कुछ कहने को शब्द नहीं हैं|

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  29. जीवन की विसंगतियों ,संघर्ष और समझौतों से उभरे गहन भावों की यथार्थ प्रस्तुति

    'खुद को ही
    काट-काट कर
    बोटी-बोटी करना
    सफल उद्यम
    बन जाता है '

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  30. बहुत अच्छी सार्थक अभिव्यक्ति|

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  31. बहुत सही कि आन्तरिक और बाह्य तौर पर खुद को कुछ साबित करना आम आदमी के विचार / इसके बाद राजनीतिज्ञों पर कटाक्ष /किसी भी तरह सफल होने वाली बात अनीति की रह पर चलने वालों के लिए और रचना का समापन बहुत गंभीर बात से कि तराजू के पलड़ों को बराबर करने के चक्कर में व्यक्ति खुद के ही टुकड़े कर रहा है /यदि इस रचना को आध्यात्मिक द्रष्टिकोण से देखें तो भी रचना आध्यात्म की और बहुत कुछ झुकी हुई है ' आज ऐसी ही रचनाओं की साहित्य को आवश्यकता है

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  32. घुड़की, घुड़दौड़ और लंगड़ी उस पर तराजू की तोल

    छोटी सी कविता में कई सारी बातें
    बधाई स्वीकार करें

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  33. मेरा दोस्त कहता है रेट रेस है जो जितना तेज दौड़ा वो उतना मोटा चूहा .....कविता नहीं है .जिंदगी के एक हिस्से का कम्पाइल वर्ज़न है

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  34. Aisa udyam kahan nhi milta ? blogjagat bhi achhuta nahi hai...badhiya prahar

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  35. बहुत ही सार्थक और सशक्त लेखन...बधाई

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  36. bahut achchhi rachna. ek sach ko prabhavshali dhang se prastut kiya hai aapne...

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  37. सच है..एकदम सच..
    अभी तो मैं अच्छे से महसूस कर सकता हूँ इस कविता को..:)

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  38. Hello
    I found your blog.
    I'm from Brazil.

    It's great to meet people from other nations.

    God is with thee,

    Suely
    Maringa, Brazil

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  39. can relate to it. bihar mein hamari parvarish ka yehi template hota hai. nicely brought out

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  40. अमृताजी जीवन के अंतर द्वंद्व ,मानसिक कुहांसे का नया व्याकरण कोई आपसे बुनना सीखे .बेहतरीन रचना ,अपने से बाहर आने की कश - म -कश . जीवन से संवाद का नया अंदाज़ लिए रहतीं हैं आपकी रचनाएं .

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