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Thursday, February 17, 2011

स्फिंक्स

वक़्त-बे-वक़्त
मेरी आतंरिक आवश्यकताएँ
करने लगती है
सुरसा से प्रतिस्पर्धा.....
चतुर-बहवे की चतुराई को भी
सूक्ष्मता से शिकस्त देते हुए...
सोने की लंका की क्या बिसात
आकाश-महल बनाने की
जिद लिए हुए ...............
देखते-ही-देखते 
मेरी महत्वाकांक्षा
पिरामिड का शक्ल
लेने लगती हैं............
आधार इतना बड़ा कि
उसकी संतति भी
रह सके सदियों तक........ 
लेकिन ऊपरी छोर
इतना नुकीला कि
वो भी टिक न पाए ............
और मैं स्फिंक्स बन 
करती रहती हूँ रखवाली
कहीं मेरे ममी पर ही
ये खड़ी न हो जाए.
चतुर-बहवे ---हनुमान

39 comments:

  1. अमृता जी,

    सुन्दर लगी पोस्ट......महत्वकांक्षा पिरामिड की शक्ल लेने लगती है........बहुत सुन्दर बिम्ब दिया है आपने......पर मैं इस शब्द का अर्थ नहीं समझ पाया जी.....

    स्फिंक्स - ?????????

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  2. सार्थक और भावप्रवण रचना।

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  3. 'और मैं स्फिंक्स बन
    करती रहती हूँ रखवाली
    कहीं मेरे ममी पर ही
    ये कड़ी न हो जाये .'
    भावपूर्ण सार्थक चित्रण

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  4. बहुत सारे बिंबों के द्वारा अंतर्मन की गहराई को शब्द देती भावपूर्ण कविता के लिये बधाई !

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  5. जो बिम्ब आपने कविता में गढ़ा है ...वो तो ठीक है लेकिन अर्थ स्पष्टता का अभाव लगता है ...खैर व्यक्ति की जिजीविषा और इच्छाओं को अभिव्यक्ति मिली है ...आपका शुक्रिया
    लेकिन उपरी छोड़ की जगह "छोर" उचित रहेगा

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  6. बहुत सुंदर सार्थक रचना -
    बधाई

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  7. very nice Amrita ji, You can view my latest blog post at http://utkarsh-meyar.blogspot.com/

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  8. thik kah sakta hu. lekin jyada kuch samajh me nahi aaya.

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  9. पहले तो मुझे स्फिंक्स का मतलब समझना पड़ा था :P
    बहुत बहुत अच्छी लगी ये कविता :)

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  10. जो लोग स्फिंक्स का मतलब नहीं समझ पाए, उनके लिए उपयोगी होगा - http://en.wikipedia.org/wiki/Sphinx :)

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  11. बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति.
    सुन्दर बिम्ब तराशें हैं आपने.
    शुभ कामनाएं.

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  12. अनूठे बिम्बों का प्रयोग। कविता के मंतव्य तक उतरने के लिये जेहन के कस-बल कुछ ढीले करने पड़े। उम्दा अभिव्यक्ति।

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  13. suesa aur hanuman ko kendra me rakhkar achchhaa likha...

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  14. पिरामिड का आकर..... बेमिसाल बिम्ब लिया है....खूबसूरत है यह अंतर्मन का द्वन्द .....

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  15. सही कहा आंतरिक आवश्यकताएं ही महत्वकांक्षा को जन्म देती है ..जिसको पूरा करते-करते आदमी स्फिंक्स बन जाता है....सार्थक रचना ..आभार

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  16. भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  17. बिम्ब और प्रतीकों का उत्तम प्रयोग। ऐसी रचनाएं कम ही मिलती हैं। बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग। सारी रचनाएं समय से पढूंगा।

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  18. कविता का बिम्ब विधान अनूठा है।

    इस श्रेष्ठ रचना के लिए बधाई।

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  19. manviya antardwandh kee bhavpurn prastuti...
    saarthak prastuti ke liye haardik shubhkamnayen!

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  20. अपने इस कविता में प्रतीक और बिम्बों का बड़ी खूबसूरती से इस्तेमाल किया है.बहुत अच्छी है कविता वाक़ई

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  21. महत्वाकांक्षा को स्फिंक्स के बिंब के साथ खूबसूरती से चित्रित किया गया है. सुंदर रचना और बिंब विधान.

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  22. bhavpurn abhivykti samajhne men men kuchh samay laga achhi rachna , badhai

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  23. ufffff....kya soch hai aapki amrita ji....behad khoobsurat.....amazing ! sphinx....!!! what were u thinking ;)

    bohot bohot hi acchi nazm :)

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  24. रचना में लाज़वाब विम्ब उकेरे हैं..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  25. इस रचना में नये बिम्वों का प्रयोग आपने बहुत सुन्दरता से किया है!

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  26. अच्छी कल्पना शक्ति पायी है आपने ! सफल रहेंगी ! हार्दिक शुभकामनायें आपको !

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  27. ...ambition should be limited...very good...

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  28. क्षमा कीजियेगा आपके ब्लॉग पर पहुँचने में देर हुई...बहुत जबरदस्त रचना है आपकी...आपकी लेखन क्षमता विलक्षण है...

    नीरज

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  29. अद्भुत कल्नाशक्ति व बिंब के नवप्रयोग के साथ शानदार अभिव्यक्ति।

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  30. बहुत ही अच्छी रचना ..गज़ब की कल्पना ..

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  31. माया, महा ठगिनी ...

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  32. महत्वाकांक्षा के पिरामिड हर घर में मिलते हैं । बहुत प्रभावशाली लेखन !शुभकामनाएँ !

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  33. Antarik aawashyaktaon ka sursa roopi astitwa hi hamein kayi shaklon mein khud ko pratirupit karne ko vivash karta hai....jo iss par kaboo paa leta hai wo jee jata hai manav roop mein..
    Aapke vicharon i paripakwata mujhe mazboor kar rahi ki main aapki saari rachnaon ko padhun...karya kshetra ki masroofiat aur likhne/chitrit karne ka shauk samay abhav ka bara karan ban jaata hai...par padhunga zaroor aur apne vicharon se awagat bhi karaunga..

    Aapko shatsah dhanyavaad meri rachnadharmita ko sarahne ke liye...

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  34. बिलकुल ऐसा ही होता है ... वक़्त बेवक्त ..

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