Social:

Monday, February 7, 2011

दबंग यादें

मुई यादें हमेशा
पीठ पीछे करती हैं वार....
कई-कई तीर बिंध जाते हैं 
छाती में और
उसके अन्दर का यन्त्र
कुछ पल के लिए
टीस के मारे 
अपना काम भूल जाता है...
अतीत के चाक पर
समय बेतरतीब नाचने लगता है
घटनाएँ दर्शक बन
अगली पंक्ति में बैठने को
करने लगती हैं मारामारी
कुछ दबंग यादें
अपना रौब दिखाकर 
चाक के बीचो-बीच
बैठ जाती हैं
जहाँ से कोई भी 
माई का लाल उठा न पाए...
उसकी खुशामद में 
दासानुदास बन जाते हैं
सोच के यन्त्र
अब चढावा चढ़ाओ
सारी सोच का
तब तक चढाते रहो
जब तक वे खुश न हों ...
आत्म शोषण का
एक रोमांचक खेल
भावनाएं एक अति से
दूसरे अति पर कूदती हुई
हम निरीह होकर
सिर्फ देखते रहते हैं....
दबंग यादें -इतनी बाहुबली कि
अतीत को भी
वर्तमान बनाने का
दम- ख़म रखती हैं....
और हम
उसी यंत्रणा-काल जनित
सुख-दुःख के भंवर में
उलझते चले जाते हैं . 
   
आइये ...इस बसंती -बयार में कुछ मिजाज़ बदला जाये ......................

48 comments:

  1. अमृता जी
    यादें भी क्या रंग जमाती हैं , आपने बहुत सही तरीके से अभिव्यक्त किया है ..एक- एक शब्द भाव को अभिव्यक्त करने में सक्षम, सिर्फ इतना कहना है ..यादें- यादें ही होती हैं बस .....सुंदर रचना

    ReplyDelete
  2. दबंग यादो का बहुत ही सटीक चित्रण किया है।

    ReplyDelete
  3. आ गई मिजाज़ बदलने ... और इस रचना पर बस फिर यही कहना है, इसे परिचय तस्वीर ब्लॉग लिंक के साथ rasprabha@gmail.com पर भेज दें वटवृक्ष के लिए ...

    ReplyDelete
  4. accha hai. sundar hai.....
    oh.. basant aa chuka hai.. yaad hi nahi tha.
    ek purana mausam lauta...... yaad bhari purwai bhi....

    yaad dilane ke liye dil se thanx....

    ReplyDelete
  5. अमृता जी,

    गहन चिंतन.....बहुत सुन्दर.....कमबख्त यादें......अतीत को भुला देना ही बेहतर है....ये वो कागज़ है जिसपर लिखा जा चुका है.....और उसे अनलिखा करने का कोई उपाय संभव नहीं.......बहुत ही सुन्दर रचना.....शुभकामनायें|

    ReplyDelete
  6. यादों का यह 'दबंग' रूप बहुत ही अच्छा लगा.
    आपका ब्लॉग भी बहुत अच्छा है.

    सादर

    ReplyDelete
  7. amrita ji...............main aapki kavitaaon ki taareef nahi kar sakta...............asamartha hoon..



    kaise likhti hain aap itni achchhi kavitaaein..........mujhe bhi sikhaiyega?

    ReplyDelete
  8. अमृता जी,
    नमस्कार !
    दबंग यादो का आपने बहुत सही तरीके से अभिव्यक्त किया है

    ReplyDelete
  9. बहुत ही बढ़िया चित्रण.

    निष्ठुर होती हैं यादें.

    शुभ कामनाएं .

    ReplyDelete
  10. बहुत खूब अमृता जी… मिज़ाज़ बदला और खूब बदला। बहुत अच्छी कविता।

    ReplyDelete
  11. यादें हैं तो सब है, पर उनका होना भी कष्टप्रद ही है, अच्छा लगा इस कविता को पढना

    ReplyDelete
  12. दबंग यादें ऐसी ही हैं.....किसी की नहीं सुनते.....बढ़िया लिखा....
    सरस्वती वन्दना में आपका स्वागत है....

    ReplyDelete
  13. यादें तो यादें हैं, कभी फूल बन जाती हैं तो कभी शूल।

    यादों को आपने बाहुबली की संज्ञा दी है जो बल्किुल सटीक है।

    अच्छी रचना।

    ReplyDelete
  14. yaden wo bhi dabang...:)
    hurr hurrr dabang.......:D
    sach me dil ko chho gaya........

    ReplyDelete
  15. जानदार और शानदार प्रस्तुति हेतु आभार।
    =====================
    कृपया पर्यावरण संबंधी इस दोहे का रसास्वादन कीजिए।
    ==============================
    शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
    गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

    ReplyDelete
  16. यादों पर किसका बस चलता है...खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    आप को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
    सादर,
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  17. bahut sundar amrita ji yaaden se hi to dil ki ahmiyat hoti hai

    ReplyDelete
  18. बहुत अनूठी और अच्छी रचना है आपकी...सच यादें कभी कभी ऐसा डेरा जमा लेती हैं के मुश्किल हो जाती है...एक शेर याद आ गया सुनिए....

    आया ही था ख्याल के आँखें छलक पड़ीं
    आंसू किसी की याद से कितने करीब थे

    नीरज

    ReplyDelete
  19. दबंग यादें ..क्या विशेषण दिया है. कैसे इतना सोच लेती हैं ?
    बहुत सुन्दर.शुभकामनायें

    ReplyDelete
  20. अमृता जी आपकी रचना गहरी संवेदनाओं के साथ-साथ संजीदगी से सराबोर हैं| यादों के बहाने आपने अनेक प्रकार के भावों को सुन्दर अभिव्यक्ति देकर, सृजन के नये सौपान चढे हैं|

    इस विधा को उत्तरोत्तर बढाती रहेंगी, ऐसी अपेक्षा है|

    शुभकामनाओं सहित!
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    फोन : 0141-2222225 (सायं सात से आठ बजे के बीच)
    मोबाइल : 098285-02666

    ReplyDelete
  21. अमृता जी आप वाकई में कमल लिखती है , पहली बार आपके ब्लॉग पर आने का सौभाग्य मिला, लेकिन आपकी शब्द रचना भी दबंग है , जैसे
    सीने के अंदर का यंत्र ... !

    ReplyDelete
  22. आपने विचारों की प्रक्रिया का बड़ा ही सटीक चित्रण किया है। कविता का शीर्षक बहुत आकर्षक है। साथ ही उसका कथ्य भी। यादों की दबंगई के आगे तो लेखक का मन भी मजदूर हो जाता है। यादों के निर्देशन पर वह अपनी कलम घसीटता है। जिससे रचनाएं उपजती हैं। उसके मनोजगत का चित्र शब्दों के रेखाचित्र में तब्दील हो जाता है। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  23. आजकल दबंग यादों का ही ज़माना है..
    सब यादों में खोये रहते हैं और फिर तकनीकी उन्नत्ति ने यह और भी आसान कर दिया है..
    यादें वाकई में दबंग होती हैं जो दबंग इंसान को भी अपंग बना जाती हैं..
    बढ़िया पंक्तियाँ..

    आभार

    ReplyDelete
  24. Khoobsoorat abhivyakti ..ye to sabki nabj pakad li hai ...

    ReplyDelete
  25. अरे वाह, क्‍या बात है। आपका यह अंदाज सचमुच औरों से जुदा है।

    ---------
    पुत्र प्राप्ति के उपय।
    क्‍या आप मॉं बनने वाली हैं ?

    ReplyDelete
  26. यादों को नए तेवर में प्रस्तुत करने के लिए आप बधाई की पात्र हैं !
    सुन्दर रचना !

    ReplyDelete
  27. सुन्दर रचना. बहुत सादगी से अपनी बात कह दी आपने.
    मेरी भी दो पंक्तियाँ हाज़िर हैं:-
    कुछ यादें दुःख देती हैं तो कुछ सुख भी दे जाती हैं.
    कुछ जीना दुश्वार करें तो कुछ जीना सिखलाती हैं.

    ReplyDelete
  28. दबंग यादों पर इस दबंग कविता के लिए हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  29. अच्छी यादों को याद रखिये,बुरी/ख़राब यादों को भुला दीजिये.
    बसंत -पर्व आप सब को भी मंगलमय हो.
    आपकी यादों के बहाने गमले का बसंत भी देखने को मिला.

    ReplyDelete
  30. Yaadein hi to hain jo yaad dilati hain bure daur me ek wo bhi waqt tha.. :)

    Very nice poem :)

    ReplyDelete
  31. कुछ दबंग यादें सचमुच पीछा नहीं छोड़तीं , लेकिन आते जाते वसंत जायका बदल जाते हैं।

    ReplyDelete
  32. यादें सचमुच दबंग होती हैं. बेहतरीन रचना.

    ReplyDelete
  33. यादें तो यादें हैं !
    ये तो साथ ही रहती हैं !
    पल मै गर ये दुःख देती हैं !
    तो पल मैं खुश भी कर देती हैं !
    यादों का सुन्दर चित्रण !

    ReplyDelete
  34. wahh....kya baat hai...yaadon ki dabangai ko kya khoob lafz diye hain....bohot khoob :)

    ReplyDelete
  35. सच कुछ यादे इतनी दबंग होती है कि जब जब याद आती है आँखो से आसुओं की नदी सी बह जाती है

    ReplyDelete
  36. waakai...yaaden baut dabang hoti hai....kuchh ma kuchh yaad dilaati rahti hai.....achchha bhi bura bhi.......

    sunder rachna....

    ReplyDelete
  37. शीर्षक अच्छा लगा...अब कल सुबह आराम से पढता हूँ इसे :)

    ReplyDelete
  38. यादों की दबंगई यूँ ही सालती रहती है। सही शब्द दिया आपने..दबंग यादें।

    ReplyDelete
  39. ateet ke chaak par
    samay brtarteeb nachne lagta hai.
    bhavpoorn sundar prastuti.

    ReplyDelete
  40. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  41. sundar abhivyakti...likhte rahiye aur padhate rahiye....mauka mile to padhte bhi rahiye...

    ReplyDelete
  42. आपके लिखने का अंदाज़ बहुत ही अच्छा लगा । कई बार हम यादों के दास होते हैं और कई बार यादें भी दासी बनती हैं , हम आने ही नहीं देते उन्हें ठीक से, लाख मिन्नतों के बाद भी , आई नहीं कि भगा दिया !
    बहुत अच्छी रचना !मेरी शुभकामनाएँ !

    ReplyDelete
  43. कभी-कभी यादों का दबंगपना वर्तमान पर भारी पड़ता है.
    बस एक बयार ही होती है जो यादों को झाड़-पोंछ कर हमारे वर्तमान अपने स्वरूप मे ला देती है.

    ReplyDelete
  44. सच है कुछ यादें अपनी दबंगई दिखा जाती हैं ... अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  45. वाह बढ़िया...
    आपने दबंग कहा...मुझे तो बड़ी ढीठ लगती हैं यादें..
    मार फटकार तिरस्कार कुछ भी करो....जाती नहीं..

    ReplyDelete
  46. कुछ दबंग यादें
    अपना रौब दिखाकर
    चाक के बीचो-बीच
    बैठ जाती हैं
    जहाँ से कोई भी
    माई का लाल उठा न पाए...


    ये यादें हैं दबंग क्या कीजे, है किनका जोर इन पर क्या केजी

    सुन्दर रचना...

    ReplyDelete